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लेखनी प्रतियोगिता -07-Oct-2022 इश्क की गलियां

गजल 


इश्क की गलियों में आजकल उनका फेरा कम हो गया है 
वो उफनता सा इश्क ए समंदर अब गुमसुम सा सो गया है 

जो कहते ना थकते थे जी ना पायेंगे एक भी दिन तेरे बिन 
वो पूनम का चांद अब इन अंधेरों का हमदम सा हो गया है 

कोई रंज ओ गम अब दिल पर चोट करता ही नहीं है "हरि" 
बेवफाई के तूफां से टकरा कर ये दिल बेदम सा हो गया है 

हुस्न की गरमी से कभी जेठ की धूप सी सुलगती थी सांसें 
हद ए इंतजार में पड़ा पड़ा ये बदन शबनम सा जम गया है 

सुनते आये हैं कि हुस्न बड़ा नाजुक, नर्म दिल, शीशा सा है 
शान ओ शौकत देखकर अब शायद  बेरहम सा हो गया है 

कभी डूबे रहते थे तेरी नशीली आंखों में दिलनशीं रात दिन 
गम के पैमानों में खुद को डुबोकर हरि खतम सा हो गया है 

श्री हरि 
6.10 22 


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8 Comments

Pratikhya Priyadarshini

09-Oct-2022 01:15 AM

Bahut khoob likha tha

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बहुत ही सुंदर सृजन और अभिव्यक्ति एकदम उत्कृष्ठ

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Swati chourasia

07-Oct-2022 06:47 PM

बहुत खूब 👌

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